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मानवीय रिश्तों के सर्वोत्कृष्ट आदर्श श्रीराम

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श्रीराम भारतीय संस्कृति के एक ऐसेे आधार स्तंभ हैं जिनसेे समूची भारतीय संस्कृति धारित होती है और जिनके यश की पताका से समूूचा आकाश भारतीय संस्कृति के गौरव से आप्लावित हो जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में लिखा- राम जनमि जगु कीन्ह उजागर।  रूप सील सुख सब गुन सागर।। पुरजन परिजन गुरु पितु माता। राम सुभाव  सबहि  सुखदाता।। अर्थात्- श्रीरामचंद्र जी ने अवतार लेकर जगत को प्रकाशित (परम सुशोभित) कर दिया। वे रूप, शील, सुख और समस्त गुणों के समुद्र हैं। पुरवासी, कुटुंबी, गुरु, पिता-माता सभी को श्रीराम जी का स्वभाव सुख देने वाला है। मानवीय जीवन प्रारंभ होते ही सामाजिक संबंधों के उत्पादन में लिप्त हो जाता है। मानवीय स्वभाव में शिष्टता सुखोत्पादक एवं अशिष्टता दु:खोत्पादक है। शिष्टता में सौंदर्य एवं अशिष्टता में क्रूरता की पृष्ठभूमि समाहित होती है। समाज में शिष्टाचार समरसता एवं समन्वय को आविर्भूत करता है जबकि अशिष्टाचार अराजकता को जन्म देता है। मानव की शांत प्रकृति भीषण समस्या को भी टालने वाली होती है जबकि मन की अशांति अर्थात खिन्नता से पूर्ण व्यवहार परिवेश में भ...

अदम्य शौर्यवान नरकेसरी श्रीराम

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सूर्यवंशियों की राजधानी-अयोध्या से वन के लिए प्रस्थान करते समय अपने पुत्र श्रीराम को देखकर माता कौशल्या पुत्र शोक में विलाप करने लगीं। जिसको देखकर लक्ष्मण की माता सुमित्रा द्वारा उन्हें श्रीराम के सत्य-पराक्रमी होने के कारण सकुशल वन से लौट आने का आश्वासन प्रदान किया गया। माता सुमित्रा का धर्म युक्त संवाद रामायण महाग्रंथ के अनुसार - कीर्तिभूतां पताकां- जो प्रभु संसार में अपनी कीर्तिमयी पताका फहरा रहे हैं और सदा सत्यव्रत के पालन में तत्पर रहते हैं, उन धर्मस्वरूप तुम्हारे पुत्र श्रीराम को कौन सा श्रेय प्राप्त नहीं हुआ है। स शूर: पुरुषव्याघ्र:- वे पुरुष सिंह श्रीराम बड़े शूरवीर हैं। वे अपने ही बाहुबल का आश्रय लेकर जैसे महल में रहते थे, उसी तरह वन में भी निडर होकर रहेंगे। या श्री: शौंर्य च रामस्य- श्रीराम की जैसी शारीरिक शोभा है, जैसा पराक्रम है और जैसी कल्याणकारी शक्ति है, उससे जान पड़ता है कि वे वनवास से लौटकर शीघ्र ही अपना राज्य प्राप्त कर लेंगे।  सत्य पराक्रमी का विजयी होना अटल है। इसी विश्वास के आधार पर सत्य पराक्रमी की अनन्त विजय का शंखनाद युगों-युगों से ...

सृष्टि में एकमेव मनाववंशनाथ श्रीराम

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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का संपूर्ण जीवन महानता का केंद्रक है। श्रीराम चरित्र जैसा महान आदर्श जहाँ 'श्रद्धा की नींव-मर्यादा का कीर्तिमान' हर मानवीय रिश्ते में केंद्र बना हो, समूची मानव जाति के इतिहास में द्वितीय नहीं है। आकाश की शोभा अनंत तारे बढ़ाते हैं किंतु सूर्य से तुलना नहीं हो सकती है, इसी प्रकार धरती पर आत्म जागृति प्राप्त करके जो मानव धन्य हुए उनकी तुलना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से नहीं की जा सकती है। किसी के जीवन में विशिष्टता एक या दो क्षेत्रों में ही हो सकती है जैसे महान योद्धा, महान राजा, महान ऋषि, महान उपदेशक (चिंतक), महान दानवीर, महान क्षमाशील, महान नीतिप्रद आदि होना एक व्यक्तित्व में असंभव सा है। किंतु इन सारे विशिष्ट गुणों को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के महान व्यक्तित्व में एक साथ देखा जा सकता है। जिसके आधार पर स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि सृष्टि में एकमेव  मानववंशनाथ श्रीराम ही हैं। मानव को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विशिष्टता से ओत-प्रोत होने के लिए अपना आदर्श श्रीराम चरित्र को बनाना होगा तभी वह  सार्थक दिशा में स्वयं को अग्रसर पाएगा। रामायण महाग्र...

अखण्ड चारित्रिक बल के पुरोधा श्रीराम

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बौद्धिकता से हमें श्रेष्ठ जीवन का मार्ग प्रतिलक्षित होता है और नैतिक आचरण से श्रेष्ठ जीवन के मार्ग का गमन होता है, जिसके आधार पर ही महान चरित्र विनिर्मित हो पाता है अन्यथा महज़ वाग्विलासिता से आज तक किसी का भला हुआ है? संस्कृत भाषा की 'चर धातु' से चरित्र शब्द बना है, संस्कृत व्याकरण के अनुसार चर धातु से भाव में इत्र प्रत्यय हुआ जिसका विग्रह है 'आचरणं चरित्रम्' अर्थात् आचरण ही चरित्र है। राष्ट्रीय चरित्र उन्नयन के लिए एक उज्जवल चरित्रवान आदर्श की आवश्यकता होती है। राष्ट्रादर्श श्रीराम ने अपने जीवन काल में जीवन के समग्र सोपानों पर रहते हुए समग्र नैतिक क्रान्ति का शंखनाद किया है, जिसकी अमर कीर्ति समूची धरती पर लाखों वर्षों के पश्चात भी गूंज रही हैं। संपूर्ण भारतीय समाज युगों से पीढ़ी दर पीढ़ी सांस्कृतिक चेतना के उन्नायक राष्ट्रादर्श श्रीराम का जन्म महोत्सव (चैत्र शुक्ल नवमी) बड़े ही हर्ष एवं उत्साह के साथ मनाता आ रहा है एवं चरित्र निर्माण हेतु अपना चिर आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को ही  मानता है। यही कारण रहा, जो भारतीय समाज को हजारों वर्षों की गुलामी एवं आक्रमण...

वात्सल्य गुण प्रधान श्रीराम-चरित्र

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महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाग्रंथ में लिखा- रामश्चारित्रवत्सल:  अर्थात् श्रीरामचंद्र के चरित्र में वात्सल्य गुण की प्रधानता है। माता-पिता का संतान के प्रति नैसर्गिक, विशुद्ध प्रेम वात्सल्य कहलाता है। प्राणी-मात्र के प्रति अपार करुणा से ओत-प्रोत सुहृदयवान श्रीराम अखिल ब्रह्मांड के परमपिता-अपरिवर्तनीय पिता हैं। जब विभीषण अपने अपमान को स्मरण कर रावण की अंत्येष्टि नहीं करना चाह रहे थे तब लोक मर्यादा को भंग होता देख करुणानिधान श्रीराम ने विभीषण से कहा - वैर मरणपर्यंत नहीं चलता है और जब कि हमारा उद्देश्य पूर्ण हो चुका है, तब तुम्हें किसी भी प्रकार का अन्यथा भाव इसके प्रति मन में ना रखते हुए इसका अंतिम संस्कार करना चाहिए क्योंकि अब तो यह हम दोनों के लिए समान ही प्रिय है।  घोर शत्रु के प्रति भी मानवीय सम्मान का श्रेष्ठ भाव प्रदर्शित करने वाले राष्ट्रादर्श श्रीराम ने सारी दुनिया के समक्ष महान आदर्श स्थापित किया। शत्रुता का कारण समाप्त होने के पश्चात शत्रु के प्रति नीति-परायण रहने की महानता के दर्शन करुणानिधान श्रीराम के जीवन में देखे जा सकते हैं।  संस्कृति सादर भाव के गर्भ से...

श्रीराम नवमी पर ही राष्ट्रीय चरित्र दिवस क्यों?

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श्रीराम नवमी पर ही राष्ट्रीय चरित्र दिवस क्यों ? मानव जीवन का रेखांकन जन्म-मृत्यु रूपी दो ध्रुवों पर ही आधारित होता है। जिस मानव ने महानता का जीवन जीया, लोक उसका जन्म दिवस स्मरण करता है जबकि दुराचरण करने वाले का जन्म दिवस कभी कोई भी स्मरण करके आनंदित नहीं होता है। जन्म दिवस मानव जीवन के अस्तित्व के बोध का परिचायक होता है।  जिस महापुरुष ने जिस क्षेत्र विशेष में विशिष्ट योगदान प्रदान किया होता है उनका जन्म दिवस उनकी उसी विशिष्टता के प्रतीक के रूप में स्मरण किया जाता है। जब भी सामूहिक चिंतन महान चरित्र विषय पर होता है तब सर्वसम्मती से सबकी बौद्धिक चेतना राष्ट्रादर्श श्रीराम के चरित्र को सर्वोत्कृष्ट एवं सर्वानुकरणीय स्वीकृत करती है। श्रीराम जन्म महोत्सव हमारे भारतीय समाज में प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल नवमी (श्रीराम नवमी) को मनाया जाता है उस दिन श्रीराम-चरित्र से महान शिक्षा ग्रहण की जाती है। लोक भाषा में श्रीरामचरितमानस ग्रंथ की रचना करने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी ने विराट ग्रंथ का नामकरण श्रीराम-चरित्र को केंद्र में ध्यान देकर ही रखा है। श्रीराम-चरित्र मानव जाति को  मानवी...