वात्सल्य गुण प्रधान श्रीराम-चरित्र

महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाग्रंथ में लिखा- रामश्चारित्रवत्सल: अर्थात् श्रीरामचंद्र के चरित्र में वात्सल्य गुण की प्रधानता है। माता-पिता का संतान के प्रति नैसर्गिक, विशुद्ध प्रेम वात्सल्य कहलाता है। प्राणी-मात्र के प्रति अपार करुणा से ओत-प्रोत सुहृदयवान श्रीराम अखिल ब्रह्मांड के परमपिता-अपरिवर्तनीय पिता हैं। जब विभीषण अपने अपमान को स्मरण कर रावण की अंत्येष्टि नहीं करना चाह रहे थे तब लोक मर्यादा को भंग होता देख करुणानिधान श्रीराम ने विभीषण से कहा - वैर मरणपर्यंत नहीं चलता है और जब कि हमारा उद्देश्य पूर्ण हो चुका है, तब तुम्हें किसी भी प्रकार का अन्यथा भाव इसके प्रति मन में ना रखते हुए इसका अंतिम संस्कार करना चाहिए क्योंकि अब तो यह हम दोनों के लिए समान ही प्रिय है। 
घोर शत्रु के प्रति भी मानवीय सम्मान का श्रेष्ठ भाव प्रदर्शित करने वाले राष्ट्रादर्श श्रीराम ने सारी दुनिया के समक्ष महान आदर्श स्थापित किया। शत्रुता का कारण समाप्त होने के पश्चात शत्रु के प्रति नीति-परायण रहने की महानता के दर्शन करुणानिधान श्रीराम के जीवन में देखे जा सकते हैं। 
संस्कृति सादर भाव के गर्भ से प्रस्फुट होती है। भारतीय संस्कृति ने हमेशा नीति के प्रति आदर भाव प्रकट करने का ज्ञान प्रदान किया है। भारतीय संस्कृति का समग्र प्रतिनिधित्व अगर किसी एक जगह देखा जा सकता है तब निसंदेह वह नाम राष्ट्रादर्श श्रीराम का ही होगा।
 शत्रुता जिस प्रकार से भी पैदा हुई हो लेकिन उसका कारण मिट जाने के पश्चात सभी परस्पर एक दूसरे के प्रति उदार भाव रखें, तब हमारे समाज की ऐसी दुर्दशा ना होगी जैसी आज होती दिख रही है।पशुओं की भांति मानव-मानव के ऊपर आक्रमण करता हुआ नजर आ रहा है। प्रकृति ने मानव को दांत एवं नाखून घातक नहीं दिए फिर भी वह पशुओं जैसा आक्रमण क्यों करता है? 
भारतीय धर्म केवल आततायी के ऊपर ही ऐसे घातक आक्रमण की तैयारी हेतु सहमती प्रदान करता है जब अनीतिवान किसी भी तरह के विचार विमर्श को तैयार ना हो और उसके अमानवीय दुर्व्यवहार से लोक में गलत घटनाक्रम घटित होता हो, तब कायरता नहीं युद्ध ही शोभा देता है। युद्ध एक मात्र सत्य, प्रेम तथा नीति की रक्षा हेतु ही करने का आदेश सभी धर्म-शास्त्रों एवं महापुरुषों द्वारा दिया गया है। नीतियुक्त युद्ध किसी विशेष व्यक्ति को केंद्र में रखकर नहीं होता बल्कि विचारधारा को केंद्र में रखकर किया जाता है, जैसे ही वह व्यक्ति या देश अपनी गलती मान लेता है तब संधि का रास्ता सदा खुला रखना चाहिए। 
करुणानिधान श्रीराम द्वारा बालि के पुत्र अंगद को पुत्रवत स्नेह प्रदान किया गया, रावण के अनुज विभीषण को विचारधारा की समानता के आधार पर अपने भ्राता तुल्य स्थान प्रदान किया गया एवं बालि और रावण की विधवा स्त्रियों को मान-सम्मान के साथ उनके अपने-अपने राज्यों में जीवन निर्वाह हेतु सुग्रीव एवं विभीषण को आज्ञा प्रदान की गई। करुणानिधान श्रीराम जैसी आदर्शवादिता प्रत्येक मानव में होनी चाहिए तभी मानवीय गरिमा शोभा को प्राप्त होगी। 
 जब व्यक्ति अपना विरोध केवल विचारधारा के आधार पर प्रकट करता है तब कभी भी उसका ह्रदय व्यथित नहीं होता है। हृदय उन्हीं का हमेशा व्यथित रहता है, जो अपने अहंकार की पुष्टि ना होने के कारण या स्वार्थ, नफरत आदि संवेगों के कारण किसी से भी शत्रुता ठान लेते हैं। जिसके कारण उनके गर्त में जाने की दुखद यात्रा का भी प्रारंभ हो जाता है।
 अपने को मानव समझने वाले उन सभी महानुभावों की एक नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह मानवीय गरिमा से युक्त आचरण प्रस्तुत करें एवं समाज में इसी प्रकार के आचरण की शिक्षाएं भी प्रदान करें। हमारे समाज की भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि अगर कोई मानवीय गरिमा के विपरीत आचरण करता हुआ पाया जाए तब उसको सजा के साथ मानवीय गरिमानुकूल व्यवहार का शिक्षण भी प्रदान किया जाए। जिससे वह सजा से मुक्त होकर पुनः सजा हेतु सुधार-गृह अर्थात जेल में ना जाए।
 इस धरती पर सबसे बड़ा धर्म है- शांति की स्थापना जो शांति का वैरी है वह समूची मानव जाति का वैरी है, जो शांति का प्रेमी है वह समूची मानव जाति का मित्र है। शांति की स्थापना एक महान दैवीय अभियान है, वात्सल्य मूर्ति श्रीराम ने शांति की स्थापना के लिए ही तो रावण के साथ महासंग्राम किया था।
 महाकवि कालिदास ने अपने काव्य रघुवंश में राष्ट्रादर्श श्रीराम के विराट व्यक्तित्व के संबंध में लिखा है- श्रीराम दृढ़ता में सबसे दृढ़, तेज में सबसे उदीप्त, उच्चता में सबसे उच्च, व्यापकता में सबसे व्यापक मेरु सदृश आत्मा वाले थे। उनका जैसा व्यक्तित्व था, वैसी ही प्रज्ञा थी, वैसी ही शास्त्रज्ञता, जैसी शास्त्रज्ञता थी, वैसी ही साधना और होती थी वैसी ही महती उपलब्धि। 
राष्ट्रादर्श श्रीराम के अमोघ बाणों की कीर्ति एवं करुणा से परिपूर्ण हृदय की उदारता सारे विश्व में विख्यात रही है, जिसे आज भी भारतीय समाज स्मरण कर अदम्य शौर्य एवं अखंड शील से ओत-प्रोत श्रीराम चरित्र की गाथा गाता है। 
✍️अमित निरंजन 
लेखक- समग्र नैतिक क्रान्ति द्रष्टा राष्ट्रादर्श श्रीराम 
उन्नायक- श्रीराम नवमी राष्ट्रीय चरित्र दिवस अभियान
samagranaitikkranti@gmail.com 

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