सृष्टि में एकमेव मनाववंशनाथ श्रीराम

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का संपूर्ण जीवन महानता का केंद्रक है। श्रीराम चरित्र जैसा महान आदर्श जहाँ 'श्रद्धा की नींव-मर्यादा का कीर्तिमान' हर मानवीय रिश्ते में केंद्र बना हो, समूची मानव जाति के इतिहास में द्वितीय नहीं है। आकाश की शोभा अनंत तारे बढ़ाते हैं किंतु सूर्य से तुलना नहीं हो सकती है, इसी प्रकार धरती पर आत्म जागृति प्राप्त करके जो मानव धन्य हुए उनकी तुलना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से नहीं की जा सकती है। किसी के जीवन में विशिष्टता एक या दो क्षेत्रों में ही हो सकती है जैसे महान योद्धा, महान राजा, महान ऋषि, महान उपदेशक (चिंतक), महान दानवीर, महान क्षमाशील, महान नीतिप्रद आदि होना एक व्यक्तित्व में असंभव सा है। किंतु इन सारे विशिष्ट गुणों को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के महान व्यक्तित्व में एक साथ देखा जा सकता है। जिसके आधार पर स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि सृष्टि में एकमेव  मानववंशनाथ श्रीराम ही हैं। मानव को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विशिष्टता से ओत-प्रोत होने के लिए अपना आदर्श श्रीराम चरित्र को बनाना होगा तभी वह  सार्थक दिशा में स्वयं को अग्रसर पाएगा।
रामायण महाग्रंथ में अंकित है -
मूलं ह्येष मनुष्याणां  धर्मसारो महाद्युति: ।
पुष्पं फलं च पत्रं च शाखाश्चास्येतरे जना:।।
अर्थात्- ये महान तेजस्वी श्रीराम सम्पूर्ण मनुष्यों के मूल हैं, धर्म ही इनका बल है। जगत के दूसरे प्राणी पत्र, पुष्प, फल और शाखायें हैं।
अनाथ होने की पीड़ा सृष्टि की भयंकर पीड़ा है। जीव-जंतु भी सजातीय समूह में बिचरते हैं। मानव जीवन को अनाथ बनाने का कार्य उसकी स्वच्छंद प्रकृति करती हैं। जहां अनुशासन का अभाव उसे प्रत्येक क्षेत्र में असफलता रूपी श्रृंगार भी दिलाता है। मर्यादा परिवार को संतुलित रखती है, रिश्तों को जोड़ती है और अनुशासनप्रिय पुरुष विजय माला धारण करके श्रेयस का भागी भी बनता है।
 मानव जीवन की बाल, युवा एवं वृद्ध अवस्था में जीवन किसी भी हिस्से में शुष्क नहीं है। नीरस जीवन स्वच्छंद प्रकृति की देन है जिसके कारण ही विराट विश्व परिवार में अनाथ बनना पड़ता है। मानव जीवन को महान आदर्श स्वरूप 'श्रीराम-सीता' को अपने दोनों नेत्रों के तुल्य धारण करना होगा तभी संरक्षित रह पाएगा भयानक अंधकार से मानववंश। सृष्टि में एकमेव मानववंशनाथ अर्थात मानव जाति के परमादर्श श्रीराम ही हैं, जिनको आदर्श रूप में स्वीकार करने वाला मानव भविष्य में किसी भी डगर पर अपने को अनाथ नहीं पाता है।
सृष्टि में विविधता परिवर्तन के अटल सिद्धांत के कारण है। पृथ्वी का भूगोल, नीर की दिशा, वायु का शीत-उष्ण, अग्नि का स्वरूप एवं आकाश की शोभा सदैव परिवर्तन के चक्र से गतिमान है। पंचमहाभूत से निर्मित होने के कारण मानव परिवर्तन के चक्र से प्रभावित होता हैं, जिसके परिणाम स्वरूप विविधता का जगत में समावेश है। रूप, रंग, भाषा, संस्कृति, सभ्यता, संप्रदाय, राष्ट्र एवं विश्व आदि में विविधता की छाप अवश्य दृष्टिगोचर होती है।
विविधता ने जीवन जीने के अनेक प्रकारों को उत्सर्जित किया है। किसी के उत्सर्जन में रोचकता हो सकती है लेकिन रोचकता हमेशा आदर्श ही हो ऐसा आवश्यक नहीं है। आदर्श के अभाव में रोचकता मात्र मनोरंजन ही कराती है जिससे किसी के जीवन का उत्थान संभव नहीं है। मानव जीवन उत्थान को प्राप्त न हुआ तब उसकी तुलना पशु जीवन से हो ही जाती है।
विश्व वसुधा पर मानव जीवन के अभ्युदय के लिए रोचकता को नहीं आदर्श को स्वीकार किया जाता है। आदर्श, प्रेरणा का जनक होता है जो व्यक्तित्व को प्रकाश या अंधकार के पद पर ले जाने का कार्य करता है। आदर्श का चयन नियति की भविष्य झांकी दिखाने में सक्षम है। अनादर्श अर्थात स्वच्छंदता जिससे पतन के गर्त में जाने की यात्रा प्रारंभ होती है।
मानववंशनाथ श्रीराम के जीवन-चरित्र से जिसने भी प्रेरणा प्राप्त की उसका जीवन देव तुल्य अवश्य बनता है क्योंकि श्रीराम चरित्र दिव्य जीवन का द्वार एवं देव संस्कृति का अवतार है। मानववंशनाथ श्रीराम का गुणगान हर युग चक्र में होगा जिनके महान चरित्र, आदर्श स्वरूप का अनुकरण मानववंश को अनाथ होने से बचाता है। राष्ट्रादर्श श्रीराम की मर्यादा का गीत सारे विश्व गगन में गुंजायमान होगा जहां फिर कोई भी मानव विराट विश्व परिवार में स्वयं को अनाथ न स्वयं को पाएगा।
✍️अमित निरंजन 
लेखक-समग्र नैतिक क्रान्ति द्रष्टा राष्ट्रादर्श श्रीराम उन्नायक - श्रीराम नवमी राष्ट्रीय चरित्र दिवस अभियान 
samagranaitikkranti@gmail.com 

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