अदम्य शौर्यवान नरकेसरी श्रीराम
सूर्यवंशियों की राजधानी-अयोध्या से वन के लिए प्रस्थान करते समय अपने पुत्र श्रीराम को देखकर माता कौशल्या पुत्र शोक में विलाप करने लगीं। जिसको देखकर लक्ष्मण की माता सुमित्रा द्वारा उन्हें श्रीराम के सत्य-पराक्रमी होने के कारण सकुशल वन से लौट आने का आश्वासन प्रदान किया गया। माता सुमित्रा का धर्म युक्त संवाद रामायण महाग्रंथ के अनुसार -
कीर्तिभूतां पताकां- जो प्रभु संसार में अपनी कीर्तिमयी पताका फहरा रहे हैं और सदा सत्यव्रत के पालन में तत्पर रहते हैं, उन धर्मस्वरूप तुम्हारे पुत्र श्रीराम को कौन सा श्रेय प्राप्त नहीं हुआ है।
स शूर: पुरुषव्याघ्र:- वे पुरुष सिंह श्रीराम बड़े शूरवीर हैं। वे अपने ही बाहुबल का आश्रय लेकर जैसे महल में रहते थे, उसी तरह वन में भी निडर होकर रहेंगे।
या श्री: शौंर्य च रामस्य- श्रीराम की जैसी शारीरिक शोभा है, जैसा पराक्रम है और जैसी कल्याणकारी शक्ति है, उससे जान पड़ता है कि वे वनवास से लौटकर शीघ्र ही अपना राज्य प्राप्त कर लेंगे।
सत्य पराक्रमी का विजयी होना अटल है। इसी विश्वास के आधार पर सत्य पराक्रमी की अनन्त विजय का शंखनाद युगों-युगों से गुंजायमान हो रहा है। अदम्य शौर्यवान नरकेसरी श्रीराम युवाकाल से ही आत्मबल से संपन्न तथा निडर थे। महान बुद्धि-बल के स्वामी सत्य पराक्रमी श्रीराम ने विश्वामित्र ऋषि के आश्रम में ऋषियों जैसा जीवन जिया तथा बलवान राक्षसों का संहार किया था।
श्रीराम-रावण संग्राम के अवसर पर विभीषण, रावण को रथ पर और श्रीराम को बिना रथ के देखकर अधीरतापूर्वक श्रीराम से कहने लगे - आपके पास न रथ है, न कवच है, और न ही जूते हैं। फिर बलवान रावण किस प्रकार जीता जाएगा?
प्रत्युत्तर में आत्मबल संपन्न श्रीराम ने उत्तर दिया - 'जय' जिस रथ से मिलती है वह यह नहीं है अपितु अन्य ही है। श्रीराम द्वारा विभीषण से विजय रथ का प्रतिपादन-
सौरभ धीरज तेहि रथ चाका।
सत्य शील दृढ़ ध्वजा पताका।।
अर्थात्- शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिए हैं। सत्य और शील उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं।
हर उस धर्म योद्धा के लिए यह स्मरणीय विजय मंत्र है जो धर्म के लिए अपने हृदय में अपार प्रेम रखता है किंतु साधन सामग्री का अभाव देखकर निष्क्रिय होकर बैठा रहता है। आत्मबल और जितेन्द्रियता की शक्ति मानव को विपरीत परिस्थितियों में भी उत्साह बल प्रदान करती है।
श्रीराम जैसे ही रावण से युद्ध के लिए तत्पर हुए उस समय का चित्रण महर्षि बाल्मीकि ने वर्णित किया है-
जब श्रीरामचन्द्र जी ने युद्ध में रावण के वध करने की अभिलाषा की, तब उनके शरीर का बल, अस्त्र बल, पराक्रम और मन की प्रसन्नता दूनी हो गई।
श्रीराम ने जिस बाण से रावण का वध किया गया था- उस बाण के वेग में वायु की, धार में अग्नि और सूर्य की, शरीर में आकाश की तथा भारीपन में मेरु और मन्दराचल की प्रतिष्ठा की गई थी।
भय से कातर हुए राक्षस जिस-जिस मार्ग से भागते थे, वहां-वहां वे श्रीरामचन्द्र को ही सामने खड़ा देखते थे। वे महाबली श्रीराम युद्ध स्थल में कब धनुष खींचते, कब भयंकर बाढ़ हाथ में लेते और कब उन्हें छोड़ते हैं-यह नहीं देखने में आता था।
नहि रामं पराक्रम्य जीवन् प्रतिनिवर्तते।
अर्थात्-श्रीरामचन्द्र जी के साथ पराक्रम दिखाकर कोई जीवित नहीं लौटता है।
तस्य वै नरसिंहस्य-श्रीराम मनुष्यों में सिंह के समान पराक्रमी हैं। अदम्य शौर्यवान नरकेसरी श्रीराम अगर चाहते तो स्वयं अकेले ही रावण के पूरे साम्राज्य को बहुत थोड़े से समय में नष्ट कर देते। जब उनके एक सेवक हनुमान ने अपने स्वामी श्रीराम के प्रताप से समूची लंका को जलाकर खाक कर दिया तब महावीर हनुमान के प्रभु श्रीराम के शौर्य के संबंध में संशय का उत्पन्न होना निरी मूड़ता नहीं तो क्या है?
नैतस्य सहिता लोका भयं कुर्युर्महामृधे।
अर्थात्-समस्त लोक एक साथ होकर यदि महासमर में आ जाएं तो भी वे श्रीरामचन्द्र जी के मन में भय उत्पन्न नहीं कर सकते हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा साधारण वानर समूह को श्रेय प्रदान करना समूची लोक शक्ति का सम्मान करना था। लोक शक्ति की सामर्थ्य से श्रीराम सेतु का निर्माण एवं रावण जैसे असुरता के महासाम्राज्य को समूलता से नष्ट कर युगों-युगों तक लोक शक्ति की महाकीर्ति का इतिहास अमर बनाना था। जिससे प्रेरणा ग्रहण कर लोक शक्ति स्वयं लोक के अंदर पनपी असुरता की पैदावार को उखाड़ कर फेंकती रहे।
सच्ची विजय केवल लोकशक्ति से ही संरक्षित रहती है। इतिहास प्रमाण है कि व्यक्ति विशेष आधारित विजय उसके प्रभाव के रहने तक ही क्षणिक रही, जैसे ही वह व्यक्ति किसी कारण से नहीं रहा वैसे ही सारे समूह ने हौंसला खोकर विपरीत पक्ष के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। जहां लोक शक्ति ही स्वयं लोक नायक की भूमिका में रही वहाँ ही चिर स्थाई विजय मिली।
श्रीराम ने सच्चे लोकनायक का आदर्श स्थापित किया है जिनसे प्रेरणा ग्रहण करते हुए किसी को भी विजय का श्रेय कभी अकेले नहीं लेना चाहिए। वर्तमान परिदृश्य में आज हम सभी को इस तथ्य से शिक्षण ग्रहण करना है। किसी व्यक्ति के अंदर कितनी ही अद्भुत मेधा, चतुरता एवं शक्ति हो, फिर भी लोक शक्ति से उसकी तुलना नहीं की जा सकती है क्योंकि लोक शक्ति की चेष्टा कभी व्यर्थ नहीं जाती है। जिन व्यक्तियों ने अपने को 'करिश्माई व्यक्तित्व' समझने की भूल की, इतिहास साक्षी है कि वे जीवनपर्यंत अपना चेहरा छुपाए फिरते रहे।
लोक शक्ति उस महाशक्ति का नाम है जिसका सम्मान विधाता भी स्वयं करता है क्योंकि लोक शक्ति के रूप में साक्षात विधाता ही विचरण करता है। जब-जब लोक शक्ति ने किसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्रयास-पुरुषार्थ किया तब-तब सफलता ने उसके कदम चूमे हैं। जनता-जनार्दन संबोधन के पीछे यही संदेश निहित है कि लोक शक्ति साक्षात परमात्मा का स्वरुप है। कभी किसी को भी यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारे अकेले से ही समाज का अमुक कार्य होगा अन्य से नहीं।
समाज स्वयं लोकनायक बने, व्यक्ति लोक का नायक नहीं अपितु स्वयं लोक ही लोक का नेतृत्व करे। लोक में सामूहिक कार्यशैली को महत्व दिया जाए न कि व्यक्ति विशेष को महत्व दिया जाए।
लंका विजय के पश्चात् श्रीराम राज्याभिषेक में सभी वानर समूह उपस्थित हुए थे। अयोध्या के राजा श्रीराम द्वारा सभी वानरों एवं मित्रों को उपहार प्रदान करके अपने-अपने घर प्रस्थान करने की आज्ञा दी गई। करुणानिधान श्रीराम की प्रेम पूर्ण छत्रछाया में सभी वानरगण एवं मित्र समूह अपनी जन्मभूमि एवं परिजनों की सुध नहीं ले रहे थे, उन्हें प्रभु श्री राम की सन्निधि, दर्शन एवं प्रेमालाप जो प्राप्त हो रहा था। अंतर्यामी श्रीराम जन्मभूमि प्रेम एवं उनके परिजनों की लौट आने की आस से भली भांति परिचित जो थे। हम यहां देखते हैं कि महान योद्धा श्रीराम सबकी भावनाओं का सम्मान करने वाले हैं जिन्होंने स्वयं मातृभूमि एवं परिजनों के प्रेम का आस्वादन पाया है। इसलिए वह मातृभूमि एवं परिजनों के प्रेम से किसी को भी अछूता नहीं रखना चाहते थे।
राष्ट्रादर्श श्रीराम जैसा जन्मभूमि प्रेम का वृतांत कल्पना में भी अन्यत्र देखने को नहीं मिलेगा। संसार में अपनी मातृभूमि के लिए दूसरों को उनकी मातृभूमि से दूर करने वाले अनेक वृतांत इतिहास में मिलेंगे लेकिन किसी एक को भी उसकी अपनी जन्मभूमि से दूर न होने देने का अकल्पनीय इतिहास करुणानिधान श्रीराम के अमर इतिहास में ही हो सकता है।
✍️अमित निरंजन
लेखक-समग्र नैतिक क्रान्ति द्रष्टा राष्ट्रादर्श श्रीराम
उन्नायक - श्रीराम नवमी राष्ट्रीय चरित्र दिवस अभियान
samagranaitikkranti@gmail.com
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