समग्र नैतिक क्रान्ति द्रष्टा-सर्वोपकारी श्रीराम
समग्र नैतिक क्रान्ति द्रष्टा-सर्वोपकारी श्रीराम
रामायण में श्रीराम द्वारा मित्र-शत्रु की परिभाषा बताई गई है-
"उपकारफलं मित्रमपकरोऽरिलक्षणम्"
अर्थात्- उपकार ही मित्रता का फल है और अपकार शत्रुता का लक्षण है।
सभ्य समाज ही सच्चा मित्र है, जिसके अभिवर्धन में ही हमारे अस्तित्व का अभिवर्धन छिपा हुआ है। भविष्य की सुरक्षा बीमा कंपनी के हाथ में नहीं है, न कोठी बनाने में, न अकूत संपत्ति जायजाद आदि इकट्ठा करने में है। हम सबकी सुरक्षा एकमात्र सज्जनों के समूह में ही है।
श्रीराम चरित्र सभ्य समाज की स्थापना हेतु समग्र शिक्षाओं से परिपूर्ण है, जिन परिवारों एवं ग्रामों में आज भी नित्य श्रीरामचरितमानस से शिक्षा ग्रहण की जाती है, उनका जीवन शांति एवं आपसी सहयोग प्राप्त करके नैतिकतापूर्वक व्यतीत हो जाता है। हम सब के द्वारा भ्रष्ट आचरण का विरोध करना ही समग्र नैतिक क्रान्ति होगी। सर्वोपकरी श्रीराम ने विश्वद्रोही रावण को मारकर सच्चे अर्थों में विश्वमित्र के रूप में अमर इतिहास बनाया है।
मैत्री आत्मा का नैसर्गिक स्वभाव है। इसलिए सच्चे मित्र के अभाव में प्रत्येक व्यक्ति का हृदय रिक्ति अनुभव करता है। कभी-कभी हम इस रिक्ति को दूर करने के लिए कुमित्र से मित्रता कर बड़ी भारी दुर्घटना को निमंत्रण दे चुके होते हैं। सर्वोपकारी श्रीराम ने सच्चे मित्र और झूठे मित्र के लक्षण विस्तार से बता कर समूची मानव जाति के प्रति विश्व मित्र होने का धर्म प्रस्तुत किया है।
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा।
गुन प्रगटै अवगुनन्हि दुरावा।।
मित्र का धर्म है कि वह मित्र को बुरे मार्ग से रोक कर अच्छे मार्ग पर चलने की नीति बताए, उसके गुण प्रकट करें और अवगुणों को अपने अंदर से दूर करने की उसे प्रेरणा दे।
सेवक सठ नृप कृपन कुनारी।
कपटी मित्र सूल समचारी।।
मूर्ख सेवक, कंजूस राजा, कुलटा स्त्री और कपटी मित्र ये चारों शूल के समान पीढ़ा देने वाले हैं।
मित्रता अंतरंगता का संबंध है, सीधी सी बात है, इस रिश्ते में हृदय से हृदय का संवाद होता है। छुपाव रहता ही कहां है, जहां मन में छुपाव, कुटिलता हो, वहां सच्ची मित्रता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। कुमित्र के समक्ष हृदय के गोपनीय तथ्य प्रकट हो जाने पर दुष्प्रचार और भावी योजनाओं की रूपरेखा पर उपहास होना निश्चित है।
हमेशा सभी को ख्याल रखना चाहिए कि हम या हमारे परिचित किसी प्रकार की गलत विचार वाले व्यक्ति के बीच अपना समय व्यतीत तो नहीं कर रहे हैं। अगर ऐसा है, तब अतिशीघ्र उनके उज्जवल भविष्य हेतु उनको गलत संगत त्यागने हेतु प्रेरित करें। उनको अच्छे साहित्य पढ़ने को दें क्योंकि अच्छा साहित्य सबसे बड़ा मित्र है। जिनके जीवन में नियति वश परिवार या सहकर्मियों के रूप में सज्जन मिल गए हों, उन्हें भूल से भी कभी अपमानित नहीं करना चाहिए, न उनकी सज्जनता को किसी अन्य उपलब्धियां के आकलन में किसी से कमतर बताना चाहिए। व्यक्ति के स्वभाव में सरलता का होना एक दैवीय उपहार है, जिसकी तुलना भौतिक उपलब्धियों से नहीं की जा सकती है।
जब सुग्रीव, पंपासुर के राजा एवं बड़े भ्राता बालि के डर से ऋष्यमूक पर्वत पर छुपे हुए थे, उस समय श्रीराम लक्ष्मण को पर्वत के नीचे आता देखकर उन्होंने हनुमान को दोनों वीरों का भेद लेने हेतु पर्वत के नीचे भेजा था। कुशल वार्ताकार हनुमान, श्रीराम लक्ष्मण से सटीक परिचय प्राप्त करके ऋष्यमूक पर्वत पर दोनों भ्राताओं को कंधों पर बैठाकर ले गए। जहां श्रीराम और सुग्रीव को एक दूसरे का वृतांत सुनाकर अग्नि की साक्षी में मित्रता निभाने की प्रतिज्ञा करा दी। मित्रता का रिश्ता कोई साधारण रिश्ता नहीं है, यह रिश्ता आंतरिक पवित्रता से विनिर्मित होता है एवं उदारता से टिकता है। सुग्रीव की समस्या को सुनकर सर्वोपकारी श्रीराम ने घोषणा कर दी
सखा सोच त्यागहु बल मोरें।
सब विधि घटब काज मैं तोरें।।
समर्थ श्रीराम द्वारा बालि का संहार किया गया और सुग्रीव को पंपासुर का राज प्रदान किया गया। सुग्रीव को राज और पत्नी दोनों प्राप्त हुए। कुछ समय बाद श्रीराम अनुज लक्ष्मण द्वारा सुग्रीव को मित्रता की प्रतिज्ञा का बोध कराया गया, जिसके उपरांत वह वानरों की सेना सहित जानकी माता की खोज को चल देते हैं और रावण से युद्ध में सहभागी बनते हैं।
मित्रता एक ऐसा आयोजन है जो किसी विशेष उद्देश्य को लेकर किया जाता है। इसमें दोनों पक्षों को सहयोग ईमानदारीपूर्वक प्रदान करना होता है। अगर एक मित्र सहयोग प्राप्त करके दुसरे मित्र को आवश्यकता पड़ने पर सहयोग नहीं करता है, तो वह नि:संदेह मनुष्य कहलाने के लायक भी नहीं है। मित्रता में एक महत्वपूर्ण भूमिका हनुमान जैसे बुद्धिमान पात्र की भी होती है। जिनके द्वारा श्रीराम सुग्रीव की मित्रता करवाई गई थी, जहां दोनों पक्षों के आपसी पारस्परिक सहयोग द्वारा सफल मित्रता का कीर्तिमान स्थापित हुआ।
वर्तमान काल में हम मित्रता के नाम पर गलत अनुभव ज्यादा महसूस करते हैं। उपकार की जगह अपकार करने वाले मित्र नहीं कुमित्र हैं। इस जगत में सभी परस्पर विश्वमित्र की भूमिका प्रस्तुत करें, तभी स्वर्णिम युग का आगाज़ होगा।
सब सबको मित्र की दृष्टि से देखें,
सब सबसे मित्र की तरह व्यवहार करें।
सब सबसे मित्र की तरह संवाद करें,
सब सबको मित्र की तरह नमस्कार करें।
हम जहां भी रहें उपकार करते रहें, विश्वमित्र बनकर सुसंस्कृत समाज का निर्माण करते रहें।
श्रीराम की पवित्रता, महिमा, उदारता, महानता तथा चरित्रवादिता पर विश्वास उनका घोर शत्रु रावण भी करता था। युद्ध भूमि में मेघनाथ की मृत्यु के समय का वृतांत है, जब सुलोचना के महल में मेघनाथ की दाहिनी भुजा कटकर गिरी थी। पतिव्रता सुलोचना समझ गई कि उनके पति युद्ध भूमि में मृत्यु को प्राप्त हो गए हैं। सुलोचना सती होने की मंशा से रावण के महल में गई और पति की मृत देह मंगाने का आग्रह किया, जिससे वह सती हो सके। चूंकि असुरराज रावण ने सुलोचना को ही युद्ध भूमि में जाकर मेघनाथ की मृत देह लाने के लिए भेज दिया था। इधर अन्य दैत्य सभापतियों के मन में संशय उठा क्योंकि श्रीराम की तरह पत्नी को रावण ने बंदी बनाकर लंका में ही रखा था। उन्हें डर सता रहा था कि श्रीराम, सुलोचना को बंदी बना सकते हैं। सभा में उपस्थित सभी दैत्यों को संबोधित करते हुए रावण ने कहा कि श्रीराम किसी की भी स्त्री को मेरी तरह कैद नहीं करेंगे, न किसी स्त्री की हत्या करेंगे क्योंकि वह सत्यवादी एवं धर्मात्मा पुरुष हैं। सुलोचना ने युद्ध भूमि में जाकर श्रीराम सेना से मेघनाथ की मृत्यदेह को सकुशलता पूर्वक प्राप्त कर लिया। भारत भूमि की महान संस्कृति रूपी ध्वज पर श्रीराम चरित्र की कीर्ति ही विश्व गगन में शोभायमान हो रही है। हम सब को सर्वोपकारी श्रीराम के महान चरित्र से उदारता एवं पवित्रता को अंगीकार करना चाहिए, जिससे हमारे समाज में भी स्त्री प्रत्येक क्षेत्र में अपने को सुरक्षित महसूस कर सके।
✍️अमित निरंजन
लेखक- समग्र नैतिक क्रान्ति द्रष्टा राष्ट्रादर्श श्रीराम
उन्नायक - श्रीराम नवमी राष्ट्रीय चरित्र दिवस अभियान
samagranaitikkranti@gmail.com
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