समग्र नैतिक क्रान्ति द्रष्टा-समदर्शी श्रीराम
समग्र नैतिक क्रान्ति द्रष्टा-समदर्शी श्रीराम समदर्शी
आदिवासी नारी शबरी के प्रेमरस पूर्ण बेरों का स्वाद समदर्शी श्रीराम ने लिया तथा नवधा भक्ति का उपदेश प्रदान किया। समदर्शी श्रीराम ने स्पष्ट तौर पर शबरी के समक्ष घोषणा की थी, वह केवल भक्ति का ही रिश्ता मानते हैं।
कह रघुपति सुन भामिनि बाता।
मानउं एक भगति कर नाता।।
जाति से कोई श्रेष्ठ नहीं होता, शबरी को नवधा भक्ति उपदेश पश्चात् श्रीराम ने बताया कि तुम्हारे अंदर सभी प्रकार की भक्ति दृढ़ है। इसलिए योगियों को दुर्लभ गति तुम्हें प्राप्त होगी।
श्रीरामचरितमानस में जाति आधारित आरोप खोजने वालों को शबरी प्रसंग स्मरण क्यों नहीं रहता है? समदर्शी श्रीराम ने शबरी को जो प्रेम, आदर तथा मान प्रदान किया, वह अद्भुत एवं ह्रदयस्पर्शी है। भक्ति, साधना तथा अध्यात्म क्षेत्र में रुचि रखने वाले साधकों के लिए नवधा भक्ति सदैव मार्गदर्शन करती है। समदर्शी श्रीराम की कृपा से शबरी का यश सदा के लिए नवधा भक्ति प्रसंग के साथ अमर हो गया है। इस लोक में भक्ति साधना करने के लिए जाति प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है, ऐसा समदर्शी श्रीराम ने शबरी के समक्ष घोषणा करके सिद्ध कर दिया है। जाति प्रमाण पत्र पर राजनीति करना लोक में स्वार्थी नेताओं का हथकंडा है, जो दिन पर दिन और हर चुनाव में बढ़ता ही जा रहा है। समाज को जाति के अंदर जाति में बांटकर विविध जातिवाद का अतिवाद किया जा रहा है। जब "श्रीरामराज्य राष्ट्रीय आदर्श शासन प्रणाली" के रूप में साकार होगा, तभी जाति व्यवस्था के नाम पर राजनीति खत्म होगी। तथाकथित सेकुलरवादी हिंदू धर्म को जाति व्यवस्था के लिए जिम्मेदार ठहराते है। जबकि श्रीरामराज्य का शासनकाल विश्व की सर्वोत्कृष्ट शासन प्रणाली है, जहां समता के दर्शन किए जा सकते हैं। समदर्शी श्रीराम ने समस्त प्रजा को समदृष्टि से देखा है। उनकी शासन व्यवस्था में जाति व्यवस्था के आधार पर किसी भी व्यक्ति को कोई पद नहीं मिलता था। परंतु वर्तमानकाल में जाति व्यवस्था योग्यता पर हावी है, इसलिए संविधान में संशोधन होना चाहिए, किसी भी तरह योग्यता पर किसी भी जाति को हावी नहीं होने देना चाहिए। कमजोर वर्ग के व्यक्ति को विकास करने के लिए हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराई जाए, जिससे वे अपनी योग्यता सिद्ध कर सकें। योग्यता ही दायित्व के लिए एकमात्र विकल्प हो, अनुकंपा नियुक्ति या आरक्षण नहीं क्योंकि अयोग्य पदधारी दक्षतापूर्वक अपने दायित्व का निर्वहन नहीं कर पाते हैं, ऐसा अनुभव का विषय है। सरकारी स्कूलों, सरकारी अस्पतालों, सरकार द्वारा संचालित यातायात के साधनों, सरकारी कार्यालयों तथा पुलिस स्टेशनों की कार्यप्रणाली हमेशा आलोचना का विषय रही है। जिसकी मुख्य बजह भ्रष्टाचार और आरक्षण के द्वारा सरकारी सेवा में पद प्राप्त करने वाले कर्मचारी हैं। जिनकी योग्यता और नीयत दोनों ठीक न होने से समाज की सेवा सही तरीके से नहीं हो पाती है। अगर बहुतायत में ऐसा होता रहा तो राष्ट्र की प्रगति, शक्ति, कौशल एवं प्रतिष्ठा वैश्विक स्तर पर कमतर आंकी जाएगी और एक दिन हमारा राष्ट्र गुलामी की कगार पर पहुंच जाएगा। इसलिए कमजोर को सबल बनाना हमारा ध्येय हो लेकिन केवल कमजोर है, इसलिए पद पर न बैठाया जाए। पद पर योग्यताधारी को ही आरूढ़ किया जाए, जिससे कुशलतापूर्वक वह अपना फर्ज अदा कर सके। समदर्शी श्रीराम का चरित्र ही भारत राष्ट्र का चरित्र है। भक्ति का रिश्ता, भक्ति की जाति ही श्रीराम को पाने में तथा श्रीरामराज्य लाने में हम सबको सफल बना सकती है। समदर्शी श्रीराम ने केवट तथा निशादराज को आदर, प्रेम प्रदान किया। समदर्शी श्रीराम ने गिद्धराज जटायु को घायलावस्था में अपनी गोद में स्थान दिया, मृत्यु पश्चात् पिता की भांति उनका आदरपूर्वक अंतिम संस्कार किया।
समदर्शी श्रीराम की अपने सभी सेवकों के प्रति महान भावनाएं थी, उनके आत्मीय भावों को भक्तराज हनुमान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने में देख सकते हैं।
वाल्मीकि रामायण में वर्णन-
एकैकस्योपकारस्य प्राणान् दास्यामि ते कपे।
शेषस्येहोपकाराणां भवाम ऋणिनो वयम्।।
अर्थात्- कपे! तुमने जो उपकार किये है, उनमें से एक एक के लिए मैं अपने प्राण न्यौछावर कर सकता हूं, तुम्हारे शेष उपकारों के लिए तो मैं ऋणी ही रह जाऊंगा।
मदङ्गे जीर्णतां यातु त्वयोपकृतं कपे।
नरः प्रत्युपकाराणामापत्स्वायाति पात्रताम्।।
अर्थात्- कपिश्रेष्ठ! मैं तो यही चाहता हूं कि तुमने जो-जो उपकार किए हैं, वे सब मेरे शरीर में ही पच जाएं, उनका बदला चुकाने का मुझे कभी अवसर न मिले क्योंकि पुरुष में उपकार का बदला पाने की योग्यता आपत्ति काल में ही आती है अर्थात मैं नहीं चाहता कि तुम कभी संकट में पड़ो और मैं तुम्हारे उपकार का बदला चुकाऊं।
सर्वसमर्थ श्रीराम की अपने सेवक हनुमान के प्रति महान भावना समदर्शिता की अद्भुत झांकी है।
जब सगे भाई रावण द्वारा भरी सभा में लात मारकर विभीषण का अपमान किया गया था, तब वह तुरंत रावण की सभा का परित्याग करके भक्तवत्सल श्रीराम की शरण हेतु प्रस्थान कर गए थे। अपमान से भी जिनका विवेक जाग जाए, वे भी पुण्यशाली हैं। विभीषण पुण्यशाली थे, जिन्हें समदर्शी श्रीराम के परम भक्त हनुमान की पावन सन्निधि मिली थी।
सुनहु विभीषन प्रभु कै रीति।
करहिं सदा सेवक पर प्रीति।।
सत्यसंगति के प्रभाव से उन्होंने रावण की सभा को त्याग कर आकाश मार्ग से श्रीराम की शरण जाते समय घोषणा कर दी थी -
राम सत्य संकल्प प्रभु सभा कालबस तोर।
मैं रघुवीर सरन अब जाउं देउ जनि खोरि।।
हम सबको सदैव यह शिक्षा बोध रहनी चाहिए कि अनीतिवान सदैव अपने अहम की तुष्टि में ही रहता है। कोई सगा-संबंधी भी अगर उसकी आत्मश्लाखा में विपरीत एक शब्द कह दे, तब वह उसका अपमान करने में हिचकता नहीं है। जो समझदार हैं, वे बिना लात खाए ही सज्जनों की संगति में रहते हैं। मूढ़ मानुष ही अहंकारी के समीप रहता है, उसकी दुत्कार एवं अपमान से उनका विवेक जागता नहीं है। आत्महीनता तथा अज्ञानता के कारण पशुओं की तरह अपमान सहन करना उनके लिए मुश्किल नहीं होता है। आत्मगौरव का भाव पवित्र सकारात्मक सोच से प्राप्त होता है। नकारात्मक सोच वाले क्रोधावेश में अपने से कमजोर वर्ग का उत्पीड़न करते रहते हैं। धर्म (पुण्य) से स्वाभिमान और अधर्म (पाप) से क्रोध बढ़ता है। धर्मशील अनीति के विरोध में अपना पराक्रम दिखाता है जबकि विधर्मी अन्याय, शोषण एवं गवन करके अपनी क्रूरता, नीचता एवं बेईमान होने का परिचय देता है।
समदर्शी श्रीराम ने रावण के भाई विभीषण को वैचारिक समानता के आधार पर अपने भाई जैसा स्नेह प्रदान किया। संसार में सभी का जीवन निर्वाह परस्पर आदान-प्रदान से ही चलता है जिसे हम कार्मिक प्रशासन कहें या लोक प्रशासन लेकिन यह एक सामाजिक व्यवस्था का आधार है, जिस वजह से किसी भी पदानुक्रम पर बैठा मानव छोटा या बड़ा नहीं हो जाता है। ईमानदारी और जिम्मेदारी के द्वारा की गई सेवा से ही लोक में आदर प्राप्त होता है। जिस संस्था या राष्ट्र में सेवा दी जा रही है, वहां पदानुक्रम व्यवस्था में कार्मिक किसी न किसी के अधीनस्थ होते ही हैं। अधीनस्थ सेवक द्वारा सेवाएं प्रदान करने पर प्रतिदान/पारितोषिक लेने की शर्त होती है लेकिन इसका अर्थ या नहीं है कि कोई जीवन भर या वर्तमान जीवन में भी किसी के द्वारा अधीन हो गया है। ऐसी भावना मन में रखना भी अमानवीयता की श्रेणी के अंतर्गत आता है।
समदर्शी श्रीराम के जीवन में समरसता का उदाहरण देखने को मिलता है, जब उनके सामने अयोध्या के प्रधान सचिव सुमंत्र आते हैं, तब वह उन्हें अपने पिता की भांति प्रणाम करते हैं।
राम सुमंत्रहि आवत देखा।
आदरु कीन्ह पिता सम लेखा।।
मंत्री सुमंत्र ने अपने आने का मंतव्य बताया कि महाराज दशरथ चाहते हैं कि श्रीराम को वन दिखाकर लौटा लाओ तब समदर्शी श्रीराम उन्हें बताते हैं कि सत्य के पालन के समान संसार में कोई दूसरा धर्म नहीं है।
सिबि दधीच हरिचन्द नरेसा।
सहे धरम हित कोटि कलेसा।।
रंतिदेव बलि भूप सुजाना।
धर्म धरेउ सहि संकट नाना।।
धरम न दूसर सत्य समाना।
आगम निगम पुराना बखाना।।
रामायणानुसार सत्य की महिमा प्रतिपादन-
सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रित:।
सत्यमूलानि सर्वाणि सत्यान्नस्ति परं पदम्।।
अर्थात्- जगत् में सत्य ही ईश्वर है। सदा सत्य के आधार पर ही धर्म की स्थिति रहती है। सत्य ही सबकी जड़ है। सत्य से बड़कर दूसरा कोई परमपद नहीं है।
"बिन बिग्यान कि समता आवइ"
अर्थात्- विज्ञान (तत्वज्ञान) के बिना क्या समभाव आ सकता है? विज्ञान से समता आती है, विज्ञान सत्यानुसंधान का कार्य करता है। सत्यखोज ही विज्ञान की आधारशिला है। हर रहस्य, शोध एवं अन्वेषण का प्रमुख केन्द्र बिंदु सत्यसाक्षात्कार करना है। भौतिकी, रसायन, खगोलीय या मानवीय अंग और स्वभाव पर की जानी वाली शोधों का उद्देश्य सत्य जानकारी प्राप्त करना ही होता है। सत्य की दृष्टि समता प्रदान करती है, तात्विक दृष्टि समता प्रदान करती है। विवेक समता का दर्शन कराता है। वर्तमान परिदृश्य में जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, राष्ट्रवाद और मजहबवाद केवल और केवल संकीर्ण विचारों का ही परिणाम है। तथाकथित बुद्धिजीवी और स्कॉलर मानव में असमानता के लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि वह मनुष्य में भेदबुद्धि फैलाकर नफरत के बीज फैला रहे हैं। हमारे मानव समाज के समक्ष श्रीरामचंद्र का महान जीवनचरित्र समता का साक्षात कीर्तिमान है। वनवासी, आदिवासी, पिछड़े, गरीब आदि सभी उनके समतापूर्ण व्यवहार के कारण क्रूर शासक रावण से लड़ने के लिए साथ चलते हैं। समतापूर्ण व्यवहार बहुत बड़ा रसायन है, जिसमें अमृत है। मानव जाति को अमरता की ओर ले जाने का कार्य समता ही करती है। जब भी इतिहास में विनाश हुआ तो विषमता के विष से ही हुआ।
✍️अमित निरंजन
लेखक- समग्र नैतिक क्रान्ति द्रष्टा राष्ट्रादर्श श्रीराम
उन्नायक - श्रीराम नवमी राष्ट्रीय चरित्र दिवस अभियान
samagranaitikkranti@gmail.com
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