समग्र नैतिक क्रान्ति द्रष्टा-धर्मविग्रह श्रीराम

समग्र नैतिक क्रान्ति द्रष्टा-धर्मविग्रह श्रीराम  
धर्मविग्रह श्रीराम एक आदर्श पति के रूप में जग विख्यात हैं, उन्होंने पत्नी प्रेम का परिचय विश्व द्रोही रावण से घोर संग्राम कर दिया और समूचे विश्व को बताया कि भारत की संस्कृति में नारी का स्थान भोग्या  नहीं देवी का है। जिस राष्ट्र में नारी को देवी का दर्जा नहीं दिया जाता है, उस राष्ट्र के सभ्य होने पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो जाता है। धर्मविग्रह श्रीराम ने मानवीय गरिमानुकूल आदर्श दांपत्य जीवन पद्धति स्थापित करते हुए प्राचीन कुरीति बहुपत्नी विवाह को नकारा एवं एकपत्नी व्रत को धारण किया, जिसका अनुकरण उनके अनुजों एवं पुत्रों ने भी किया। बहुसंख्यक भारतीय जो स्वयं को "रामवंशी" मानते हैं, वे भी एकपत्नी व्रत का पूरी निष्ठा के साथ निर्वाह करते देखे जाते हैं। 
यह भी ध्रुव सत्य जान लें, जो पुरुष आदर्श पति सिद्ध नहीं हो सकता, वह आदर्श पिता भी नहीं बन सकता है। नि:संदेह आदर्श पति ही हमेशा आदर्श पिता होता है। चूंकि धर्मविग्रह श्रीराम एक आदर्श पति हैं, इसलिए वे आदर्श पिता भी हैं, दोनों संबंध एक सिक्के के दो पहलू ही हैं। 
धर्मविग्रह श्रीराम का अपनी धर्मपत्नी सीता के प्रति अगाध प्रेम था, वनवास के दौरान अपने हाथों से पुष्पों के हार बनाकर पहनाने का वृतांत गोस्वामी तुलसीदास बाबा के शब्दों में देखते हैं- 
एक बार चुन कुसुम सुहाए। 
निज कर भूषन राम बनाए।।
सीतहि पहिराए प्रभु सादर। 
बैठे फटिक सिला पर सुंदर।।
विवाह जीवन भर साथ रहने हेतु भावी जीवन का प्रवेश द्वार है, जिसकी यात्रा अनंत है, जो विवाह के आयोजन के साथ समाप्त नहीं होती, बल्कि शुभारंभ होती है। मां सीता के प्रेम, समर्पण एवं त्याग का दर्शन प्रभु श्रीराम के साथ वनगमन का आग्रह ही प्रकट करता है। दंपत्ति एक जीवन गाड़ी के दो पहिए हैं, जिनमें एक मस्तिष्क प्रधान तो दूसरा हृदय प्रधान है। सभी दंपत्तियों का समग्र विकास, समर्पण और सेवा की नींव पर ही टिका है। इसलिए दंपत्तियों को 'श्रीराम-सीता' के जीवन से प्रगाढ़ आत्मीयता, प्रेम-विश्वास एवं सदाचार की प्रेरणा लेनी चाहिए, जिससे दांपत्य जीवन मिठास से भर जाए और जीवन का वनवास अर्थात्  संकटकाल भी हंसते-हंसते निकल जाए। पति-पत्नी दोनों का समान दायित्व बनता है कि विवाह मंडप में जिस प्रतिज्ञा को लिया है,उसे पूर्ण भी करते रहें- 
यथा पवित्र चिन्तेन पातिब्रत्यं त्वया धृतम्।
तथैव  पालयिष्यामि  पत्नीव्रत महं  ध्रुवम्।।
अर्थात्- जिस प्रकार तुम्हारे द्वारा पवित्र चित्त से पतिव्रत धारण किया गया है उसी प्रकार मैं भी निश्चयपूर्वक पत्नीव्रत का पालन करूंगा। 
धर्मविग्रह श्रीराम एवं जगतजननी मां सीता के विवाह की नींव धनुष यज्ञ से पहले ही हो चुकी थी, जब जनककुमारी भगवती पार्वती मां के पूजन हेतु पुष्प वाटिका में गई थीं। धर्मविग्रह श्रीराम ने पुष्पवाटिका में उपस्थित अपने भाई लक्ष्मण से कहा, किसी स्त्री की तरफ हमारी दृष्टि नहीं जाती है लेकिन जनककुमारी की ओर हमारा ध्यानाकर्षण हुआ है, इसमें विधाता ही कारण जानें। रघुवंशियों का सहज जन्मगत स्वभाव है कि उनका मन कभी कुमार्ग पर पैर नहीं रखता, निश्चित तौर पर सीता के लिए मेरा मन लुभाया है। यह संवाद करते हुए दोनों भाई अपने गुरु विश्वामित्र जी के पास लौट आए। धर्मविग्रह श्रीराम स्वभाव से सहज एवं सरल हैं, पुष्पवाटिका में घटित प्रकरण को गुरु विश्वामित्र जी के समक्ष कह देते हैं। धर्मविग्रह श्रीराम की निश्चलता देख विश्वामित्र जी अति प्रसन्न हुए और मनोरथ पूर्ण हो ऐसा आशीष प्रदान किया। धनुषयज्ञ में ऋषि विश्वामित्र जी अपने साथ दोनों राजकुमारों को महाराजा जनक की सभा में ले गए, जहां गुरु आज्ञा लेकर श्रीराम ने धनुष को तोड़ दिया, जिसे अन्य प्रतिभागी हिला भी नहीं पा रहे थे। श्रीराम ने अपने अप्रतिम शौर्य के बल पर सीता से वरमाला ग्रहण कर दांपत्य जीवन में प्रवेश किया। धर्मनिष्ठ श्रीराम ने अपने अनुज लक्ष्मण को श्रेष्ठ के तीन सिद्धांत बताए। श्रीरामचरितमानस में बाबा तुलसी ने लिखा-
जिन्ह कै लहहीं न रिपु रन पीठी।
नहीं पावहिं परतिय  मनु डीठी।।
मंगल लहहिं न जिन्ह कै नाहीं ।
ते   नरबर   थोरे   जग    माहीं।।
1. रण में शत्रु जिसकी पीठ नहीं देख पाते हैं। 2.पराई स्त्रियां जिनके मन और दृष्टि को नहीं खींच पाती हैं। 3.भिखारी जिनके यहां से खाली नहीं लौटते हैं। 
रामायणानुसार- 
"रामो विग्रहवान् धर्मः साधु सत्यपराक्रमः।" 
अर्थात् श्रीराम धर्म के मूर्तिमान् स्वरूप हैं। वे साधु और सत्यपराक्रमी हैं।
✍️अमित निरंजन 
लेखक- समग्र नैतिक क्रान्ति द्रष्टा राष्ट्रादर्श श्रीराम
उन्नायक - श्रीराम नवमी राष्ट्रीय चरित्र दिवस अभियान
samagranaitikkranti@gmail.com 

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